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________________ २६९० भगवती सूत्र-श. १८ उ. ३ पाप-कर्म में भेद ___उत्तर-हां, भगवन् ! उसके कम्पन में यावत् उस-उस प्रकार के परिणाम में भेद है । तो हे माकन्दिक पुत्र ! इस कारण कहा जा सकता है कि यावत् उस कर्म के उस-उस रूपादि परिणाम में भी भेद है। ... १८ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिकों ने जो पाप-कर्म किया है, यावत् करेंगे, उस पाप-कर्म में कुछ भेद है ? १८ उत्तर-हाँ, माकन्दिक पुत्र ! भेद है । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिये। १९ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहंति, तेसि णं भंते ! पोग्गलाणं सेयकालंसि कहभागं आहारति, कइभागं गिजरेंति ? १९ उत्तर-मागंदियपुत्ता ! असंखेजहभागं आहारेंति, अणंतभागं णिजाति। २० प्रश्न-चक्किया णं भंते ! केइ तेसु णिज्जरापोग्गलेसु आसइत्तए वो जाव तुयट्टित्तए ना ? २० उत्तर-णो इणटे समटे, अणाहारणमेयं बुइयं समणाउसो ! एवं जाव वेमाणियाणं। * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ अट्ठारसमे सप तईओ उद्देसो समतो ॥ कठिन शबाप-तपट्टितए -सोने, सेयकालंसि-भविष्य काल में, भासइत्तए-बैठने । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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