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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ २४ ज्योतिपी देवों का उपपात ३१७५ सिएसु चेव उववजमाणस्म सत्त गमगा तहेव मणुस्साण वि । णवरं ओगाहणाविसेसो । पढमेसु तिसु गमएसु ओगाहणा जहण्णेणं साइ. रेगाइं णव धणुसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। मज्झिमगमए जहण्णेणं साइरेगाई णव धणुसयाई, उक्कोसेण वि साइरेगाई णव धणुसयाई । पच्छिमेसु तिसु गमएसु जहणेणं तिणि गाउयाई उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई । सेसं तहेव गिरवसेसं जाव 'संवेहो' त्ति । । भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन ! असंख्य वर्ष की आय वाला संज्ञी मनुष्य, ज्योतिषी में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? । ११ उत्तर-हे गौतम ! ज्योतिषी में उत्पन्न होने वाले असंख्य वर्ष की आयु वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के सात गमक के समान, मनुष्य के विषय में भी सात गमक जानना चाहिये, परन्तु अवगाहना में विशेषता है। प्रथम के तीन गमक में अवगाहना जघन्य सातिरेक नौ सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है । मध्य के तीन गमक में जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक नौ सौ धनुष होती है । अन्तिम के तीन गमक में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ है । शेष यावत् संवेध तक उसी प्रकार है। . १२ प्रश्न-जइ संखेजवासाउयसण्णिमणुस्से ० ? १२ उत्तर-संखेजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव णव गमगा भाणियव्वा । णवरं जोइसियठिई संवेहं च जाणेजा, सेसं तं चेव गिरवसेसं । ® 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति ®. ॥ चउवीसइमे सए तेवीसइमो उद्देसो समत्तो ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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