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________________ ३१७४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २३ ज्योतिपी देवों का उपपात औधिक गमक के समान । परन्तु स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम, शेष पूर्ववत् । इस प्रकार अन्तिम तीन गमक जानने चाहिये । स्थिति और संवेध भिन्न है । ये सात गमक हुए ७। ९ प्रश्न-जइ संखेजवासाउयसण्णिपंचिंदिय० ? ९ उत्तर-संखेजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव णव वि गमा भाणियव्वा । णवरं जोइसियठिइं संवेहं च जाणेजा, सेसं तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं ९ । भावार्थ-९ प्रश्न-यदि वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिथंच से आ कर उत्पन्न हो, तो ? ९ उत्तर-असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के समान नौ गमक जानना चाहिये । स्थिति और संवेध उनसे भिन्न है । शेष पूर्ववत् १ से ९। १० प्रश्न-जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति ? १० उत्तर-भेदो तहेव । जावभावार्थ-१० प्रश्न-यदि वे मनुष्य से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो ? १० उत्तर-पूर्वोक्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के समान । ११ प्रश्न-असंखेजवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववजित्तए से णं भंते !० ? ११ उत्तर-एवं जहा असंखेन्जवासाउयसण्णिपंचिंदियस्स जोइ. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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