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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २१ मनुष्य की विविध योनियों से उत्पत्ति
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अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है। इस प्रकार नौ गमक जानना चाहिये, किंतु स्थिति, अनुबन्ध और सवेध उससे भिन्न है। इस प्रकार यावत् अच्युत देवलोक पर्यन्त । स्थिति, अनुबन्ध और संवेध उससे भिन्न है। प्राणत देवलोक की स्थिति को तीन गुणा करने पर साठ सागरोपम, आरण की स्थिति को तीन गुणा करने पर त्रेसठ सागरोपम और अच्युत की स्थिति को तीन गुणा करने पर छासठ सागरोपम होते हैं।
१२ प्रश्न-जइ कप्पाईयवेमाणियदेवेहितो उववज्जति किं गेविजगकप्पाईय०, अणुत्तरोववाइयकप्पाईय० ?
१२ उत्तर-गोयमा ! गेविजगकप्पाईय०, अणुत्तरोववाइय० ।
भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे मनुष्य, कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो ग्रैवेयक कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं या अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव से ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! वे ग्रेवेयक और अनुत्तरोपपातिक-दोनों प्रकार के कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं। - १३ प्रश्न-जइ गेविजग किं हेट्ठिम हेट्ठिम गेविजगकप्पाईय० जाव उवरिम उवरिम गेविजग० ?
१३ उत्तर-गोयमा ! हेट्ठिम हेट्ठिम गेविजग० जाव उवरिम २० । ___ भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे मनुष्य, प्रैवेयक कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो अधस्तन-अधस्तन (सब से नीचे के) प्रेवेयक से यावत् उपरितन-उपरितन (सब से ऊपर के) ग्रेवेयक से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
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