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________________ ३१४० भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति ३७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त०, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टिईएसु उववजह । भावार्थ-३७ प्रश्न-हे भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य, संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? ___३७ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता है। ३८ प्रश्न-ते गं भंते !? ३८ उत्तर-लद्धी से जहा एयस्सेव सण्णिमणुस्सस्स पुढविकाइएसु उक्वजमाणस्स पढमगमए जाव 'भवादेसो' ति । कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडि. पुहुत्तमभहियाइं १। भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! वे संज्ञो मनुष्य एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि ? ३८ उत्तर-पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने वाले संज्ञी मनुष्य के प्रथम गमक के समान, यावत् भवादेश पर्यन्त । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम १ । ३९-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्व कोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ २ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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