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________________ भगवती सूत्र-श. १८ उ. २ पृथिव्यादि से मनुष्य हो, मुक्त हो सकते है २६७७ यों कह कर माकन्दीपुत्र अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर के श्रमण-निर्ग्रन्थों के समीप आये और श्रमण-निर्ग्रन्थों से इस प्रकार बोले-'हे आर्यो ! कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है, इसी प्रकार हे आर्यों ! कापोतलेशो अप्कायिक और कापोतलेशी वनस्पतिकायिक जीव, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है।' माकन्दीपुत्र अनगार की इस प्ररूपणा को श्रमण-निर्ग्रन्थों ने मान्य नहीं की और श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समीप आये । भगवान् को वन्दना नमस्कार कर के इस प्रकार पूछा प्रश्न-एवं खलु भंते ! मागंदियपुत्ते अणगारे अम्हं एवमाइक्खइ, जाव परूवेइ-'एवं खलु अजो ! काउलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो! काउलेस्से आउकाइए जाव अंतं करेइ, एवं वणस्सइकाइए वि जाव अंतं करेइ, से कहभेयं भंते ! एवं ?' उत्तर-'अजो' त्ति समणे भगवं महावीरे ते समणे णिग्गंथे आमंतित्ता एवं क्यासी-जण्णं अजो ! मागंदियपुत्ते अणगारे तुम्भे एवं आइक्खइ, जाव परूवेइ-एवं खलु अजो ! काउलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो ! काउलेस्से आउकाइए जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो! काउलेस्मे वणस्सइकाइए वि जाव अंतं करेइ, सच्चे णं एसमठे, अहं पि णं अजो ! एवमाइक्खामि ४-एवं खलु अजो ! कण्हलेसे पुढविकाइए कण्हलेसेहितो पुढविकाइएहिंतो जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो! णीललेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेइ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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