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________________ ३१०२ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति आवें, तो वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में आते हैं ? ५० उत्तर-हे गौतम ! यहां भी असुरकुमार के समान नौ गमक हैं, परन्तु स्थिति और कालादेश उनसे मित्र है। स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पल्योपम, शेष पूर्ववत् । ५१ प्रश्न-जइ जोइसियदेवेहितो उववनंति किं चंदविमाणजोइसियदेवेहितो उववजंति जाव ताराविमाणजोइसिय० ? ५१ उत्तर-गोयमा ! चंदविमाण० जाव ताराविमाण । भावार्थ-५१ प्रश्न-हे भगवन ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) ज्योतिषी देवों से आते हैं, तो चन्द्र-विमान यावत् तारा-विमान से आते हैं ? ५१ उत्तर-हे गौतम ! वे चन्द्र-विमान से यावत् तारा-विमान से आते है। ५२ प्रश्न-जोइसियदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु० ? ५२ उत्तर-लद्धी जहा असुरकुमाराणं । णवरं एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता । तिण्णि णाणा, तिण्णि अण्णाणा णियमं । ठिई जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उकोसेण पलिओवमं वाससयसहस्सअमहियं । एवं अणुबंधो वि । कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतो. मुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्से णं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, एवड्यं० । एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणि. यव्वा, णवरं ठिई कालादेसं च जाणेजा। भावार्थ-५२ प्रश्न-हे भगवन्! जो ज्योतिषी देव, पृथ्वीकायिक जीवों में आवें, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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