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________________ ३०७६ भगवती मूत्र-दा. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्तत्ति गया है, वह वहाँ पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले अप्कायिक जघन्य काल स्थिति की विवक्षा से कहा गया है । काल की अपेक्षा उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष कहे गये हैं । यहाँ उत्कृष्ट स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों के चार भवों के ८८००० वर्ष होते हैं। इसी प्रकार औधिक में भो उत्कृष्ट स्थिति वाले अपकायिक जीवों के चार भवों के २८००० वर्ष होते हैं । इन दोनों को मिलाने से एक लाख सोलह हजार वर्ष होते हैं। छटे गमक में जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिको में उत्पत्ति बतलाई गई है । इसलिये दोनों के चार भवों के चार अन्तर्मुहर्त अधिक ८८००० वर्ष होते हैं । इसी प्रकार सातवें और आठवें गमक का संवेध भी जानना चाहिये, किन्तु नौवें गमक में जघन्य से पृथ्वीकायिक और अप्कायिक का उत्कृष्ट स्थिति मिलाने से २९००० वर्ष होते हैं और उत्कृष्ट पूर्वोक्त रीति से एक लाख सोलह हजार वर्ष होते हैं । १६ प्रश्न-जइ तेउकाइएहितो उववजति छ ? १६ उत्तर-तेउकाइयाण वि एस चेव वत्तव्वया । णवरं णवसु वि गमएसु तिणि लेस्साओ । तेउकाइया णं सुईकलावसंठिया । ठिई जाणियब्वा । तईयगमए कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीई वाससहस्साई वारसहिं राइदिएहिं अब्भहियाई-एवइयं० । एवं संवेहो उवजंजिऊण भाणियव्यो। कठिन शब्दार्थ-उवज़ुजिऊण-उपयोग लगा कर । भावार्थ-१६ प्रश्न-यदि वह तेजस्काय से आता हो, तो ? १६ उत्तर-इस विषय में भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिये । यहां नौ ही गमकों में तीन लेश्याएँ होती हैं । ते उकाय का संस्थान सूचीकलाप (सूइयों का समूह) के समान होता है । स्थिति तीन अहोरात्र की होती है। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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