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________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति आकार का होता है। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है । इस प्रकार तीनों गमकों में जानना चाहिये। तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमक में संवेध भव को अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं, शेष चार गनकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। छठे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक अठासी हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। सातवें गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । आठवें गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक अट्ठाईस हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। नौवें गमक में भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव करता है, काल की अपेक्षा जघन्य उनतीस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । इस प्रकार नौ ही गमकों में अपकायिक की स्थिति जाननी चाहिये । ९ । २०७५ विवेचन - अप्काय के चार भेद हैं। यथा-सूक्ष्म के अपर्याप्त औरं पर्याप्त तथा बादर के अपर्याप्त और पर्याप्त । भवादेश से संबेध का कथन इस प्रकार है । संवेध--भव की अपेक्षा सभी गमकों में जघन्य दो भव हैं किन्तु उत्कृष्ट में भिन्नता है । यथा- तीसरे, छठे, सातवें, आठवें, और नौवें गमक में उत्कृष्ट संवेध आठ भव है । क्योंकि तीसरे, छठे, सातवें और आठवें गमक में एक पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति है और नौवें गमक में दोनों पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति है । शेष पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें गमक में उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं । क्योंकि इन चार गमकों में किसी भी पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति नहीं है । तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य बाईस हजार वर्ष कहे गये हैं, क्योंकि उत्पत्ति स्थानभूत पृथ्वी कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति है और अन्तर्मुहूर्त जो अधिक कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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