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भगवती सूत्र - श. २४ उ १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है । ७ ।
१२- सो चेव जहण्णकाल ट्टिईएस उववष्णो जहण्णेणं अंतोमुहुत्त०, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । एवं जहा सत्तमगमगो जाव 'भवादेसो' कालदेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहरसाई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उकोसेण अट्टासीइं वाससहरसाई चउहिं अंतोमुहुत्ते हिं अमहियाई - एवइयं ० ८ ।
भावार्थ - १२ - यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पृथ्वोकायिक, जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार यहाँ सातवें गमक की वक्तव्यता यावत् भवादेश तक जाननी चाहिये । काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । ८ ।
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१३ - सो चेव उक्कोसका लट्ठिएसु उववण्णो जहण्णेणं बावीसवाससहस्सट्टिईएस, उकोसेण वि बावीसवाससहस्सट्टिईएस, एस चेव सत्तमगमगवत्तव्वया जाणियव्वा जाव 'भवादेसों' त्ति । कालादेसेणं जहणेणं चोयालीसं बाससहस्साईं, उक्कोसेणं छाबत्तरिवाससहरसुत्तरं सयसहस्सं - एवइयं ९ ।
भावार्थ - १३ - यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला, पृथ्वीकायिक उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। यहां सातवें
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