________________
भगवती सूत्र-श. २ - उ. २ असुरकुमारों का उपपात
३०४७
की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके लिये भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । यहां असुरकुमारों की स्थिति और संवेध का कथन विचार पूर्वक जानना चाहिये ८।
१५-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं तिपलि. ओवम०, उक्कोसेण वि तिपलिओवम० एस चेव वत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जहणेणं छप्पलिओवमाई, उकोसेण वि छप्पलिओ. वमाइं-एवइयं० ९ ।
भावार्थ-१५ यदि वह उत्कृष्ट स्थिति वाला पञ्चदेन्द्रिय तिर्यंच, उत्कृष्ट स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यता। काल से जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम तक यावत् गमनागमन करता है ९ ।
विवेचन-असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पचेन्द्रिय तिर्यंच के गमकों में जो उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बतलाई गई है, वह देवकुरु आदि के युगलिक तिर्यञ्चों का अपेक्षा समझनी चाहिये । क्योंकि वे तीन पल्योपम रूप असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले होते हैं और उत्कृष्ट अपनी आयु के समान ही देव आयु का बन्ध करते हैं । वे उत्कृष्ट संख्याता उत्पन्न होते हैं, क्योंकि असंख्यातवर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच, मनुष्य-क्षेत्रवर्ती ही होने से सदा संख्यात ही होते हैं, असंख्यात कभी नहीं होते । उनमें एक वज्र ऋषभनाराच संहनन ही पाया जाता है । अवगाहना में जो धनुष-पृथक्त्व अवगाहना कही गई है, वह पक्षियों की अपेक्षा समझनी चाहिये । उनको आय पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण होने से वे असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले होते हैं । उत्कृष्ट अवगाहना जो छह गाऊ की बतलाई गई है, वह देवकुरु आदि में उत्पन्न हाथी आदि की अपेक्षा समझनी चाहिये । असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले नपुंसक वेदी नहीं होते, वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी ही होते हैं । उत्कृष्ट छह पल्योपम की स्थिति बतलाई गई है, वह तीन पल्योपम तो तिथंच भव सम्बन्धी और तीन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org