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________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपत वज्जेजा, मेसं तं चेव । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगाओ दो पुव्वोडीओ, उक्कोसेण वि साइरेगाओ दो पुव्वकोडीओ - एवइयं काल सेवेज्जा ६ । ३०४६ भावार्थ-१२ यदि वह जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । शेष पूर्ववत् । काल की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक दो पूर्वकोटि वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है ६ । १३-सो चैव अप्पणा उक्कोसका लट्ठिईओ जाओ, सो चेव पढमगमगो भाणियो । णवरं ठिई जहणेणं तिष्णि पलिओवमाई, उको सेणं वितिष्णि पलिओ माई | एवं अणुबंधो वि । कालादेसेणं जहणणं तिष्णि पलिओ माई दमहिं वाससहस्सेहिं अन्भहियाई, उक्को सेणं छप्पलिओ माई - एवइयं ० ७ । भावार्थ - १३ यदि वह स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और असुरकुमारों. में उत्पन्न हो, तो उसके लिये वही प्रथम गमक कहना चाहिये, स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम का होता है । काल से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक तीन पत्योपम और उत्कृष्ट छह पत्योपम तक यावत् गमनागमन करता है ७ । १४ - सो चैव जहण्णकाल ट्टिईएस उववण्णो, एस चैव वत्तव्वया । णवरं असुरकुमारट्टिइं संवेहं च जाणिज्जा ८ । भावार्थ- १४ यदि वह उत्कृष्ट स्थिति वाला पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, जघन्य काल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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