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________________ .. भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुरकुमार का उपपात ३०४१ अ 'उक्कोसेणं स तुल्लपुवकोडी आउयत्तं णिवत्तेइ ण य सम्मुच्छिमो पुष्वकोडीआउयताओ परो अत्थि'। अर्थात्-सम्मूच्छिम तिर्यंच का आयुष्य पूर्वकोटि से अधिक नहीं होता । इसलिये वह देव-भव में भो पूर्वकोटि परिमाण ही आयुप्य वांधता है, अधिक नहीं बांधता । पर्याप्त असंजी पचेंद्रिय तिर्यत्र-योनिक के चौथे, पांचवें और छठे गमक में अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं। ४ प्रश्न-जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं संखेजवासाउयसण्णि० जाव उववजंति असंखेजवासाउय० जाव उववजंति ? ४ उत्तर-गोयमा! संखेजवासाउय० जाव उववजंति, असंखेजवासाउय० जाव उववजंति। भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यच-योनिक जीव, असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो क्या संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेंद्रिय तियंच-योनिकों से आता है या असंख्यात वर्ष की आयुष्य में से ? . ४ उत्तर-हे गौतम ! संख्यात वर्ष और असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले दोनों प्रकार के तिर्यचों से आता है। ५ प्रश्न-असंखेजकासाउय-सण्णि-पंचिंदिय-तिरिवखजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल. ट्ठिईएसु उववजेजा ? ५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टिईएसु उववजेजा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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