________________
भगवती सूत्र - श. २४ उ १ मनुष्यों का नरकोपपात
Jain Education International
और तीन नरक भव, इस प्रकार सात होते हैं ।
कालादेश से यहां दो अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम कहा गया है, सो सातवीं पृथ्वी के नरक भत्र सम्बन्धी जघन्य स्थिति के बाईस सागरोपम समझने चाहिये और प्रथम तथा तृतीय मत्स्य भत्र सम्बन्धी दो अन्तर्मुहूर्त समझने चाहिये ।
सातवीं पृथ्वी में बाईस सागरोपम का स्थिति से तीन वार उत्पन्न होता है । इसलिये ६६ सागरोपम की स्थिति कही गई है। नारक भवान्तरित चार मत्स्य भव होते हैं । उनको अपेक्षा चार पूर्वकोटि कही गई है। इससे यह फलितार्थ होता है कि सातवीं नरक पृथ्वी में जन्य स्थिति वाले नैरयिकों में ही उत्कृष्ट तीन वार उत्पन्न होता है, यदि ऐसा न हो, तो ऊपर कहा हुआ काल परिमाण घटित नहीं हो सकता। यहां उत्कृष्ट काल की विवक्षा की गई है, इसलिये जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में तीन बार उत्पन्न होने का कथन किया गया है और चार मत्स्य भवों की अपेक्षा चार पूर्वकोटि का कथन किया गया है । उत्कृष्ट स्थिति वाले नरयिकों में दो बार ही उत्पत्ति होती है । उस अपेक्षा से ६६ सागरोपम का कथन किया गया है और तीन मत्स्य भवों की अपेक्षा तीन पूर्वकोटि का कथन किया गया है। यह पहला गमक है । जघन्य काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने का दूसरा गमक है । उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने सम्बन्धी तीसरा गमक है । इसमें उत्कृष्ट पांच भव ग्रहण का कथन किया गया है । जिनमें तीन मत्स्य भव और दो नारक भव समझने चाहिये । इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि सातवीं नरक में मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में दो ही बार उत्पन्न होता है ।
जघन्य स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने सम्बन्धी चौथा गमक है। इसकी वक्तव्यता रत्नप्रभा के चौथे गमक के समान है । अन्तर केवल इतना है कि रत्नप्रभा में छह संहनन और तीन वेद कहे गये हैं, किन्तु सातवीं नरक के चौथे गमक में केवल एक वज्र ऋषभनाराच संहनन का कथन करना चाहिये और स्त्रीवेद का निषेध करना चाहिये । शेष गमकों का कथन स्पष्ट ही है ।
३०२३
मनुष्यों का नरकोपपात
८७ प्रश्न - जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं सष्णिमणुस्सेहिंतो
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org