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________________ भगवती मूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी नियंत्र का नरकोपपात ३०१७ भंते ! केवइकालटिईएमु उववज्जेज्जा ? ७६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं वावीससागरोवाईएसु, उकोसेणं तेत्तीससागगेवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा। भावार्थ-७६ प्रश्न-हे भगवन ! पर्याप्त संख्येयवर्षायष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच सातवी नरक पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? ___७६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ७७ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? ७७ उत्तर-एवं जहेव रयणप्पभाए णव गमगा लद्वी वि सच्चेव । गवरं वयरोसभणारायसंघयणी । इत्थीवेयगा ण उववज्जंति, सेसं तं चेव जाव 'अणुबंधो' त्ति । संवेहो भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई । कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाई चउहिं पुवकोडीहिं अन्भहियाई, एवइयं जाव करेज्जा १। भावार्थ-७७ प्रश्न-हे भगवन् ! एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ७७ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा के समान इसके भी नौ गमक और सम्पूर्ण वक्तव्यता जानो। विशेष यह है कि वहां वज्रऋषभनाराच संहनन वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यच जीव ही उत्पन्न होता है । स्त्रीवेद वाले जीव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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