SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३००८ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तियंच का नरकोपपात ६४ प्रश्न-जहण्णकालहिईयपजत्तसंखेन्जवासाउयसष्णिपंचिं. दियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढवि० जाव उववजित्तए से णं भंते ! केवइकालटिईएसु उक्षजेजा ? ६४ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु, उको सेणं सागरोवमट्टिईएसु उववज्जेजा। भावार्थ-६४ प्रश्न-हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त संख्येयवर्षायष्क पंचेन्द्रिय तिर्यंच, रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? ६४ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। ६५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? ६५ उत्तर-अवसेसो सो चैव गमओ । णवरं इमाइं अट्ठ णाणत्ताइं-१ सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभार्ग, उक्को. सेणं धणुहपहुत्तं, २ लेस्साओ तिण्णि आदिल्लाओ, ३ णो सम्मदिट्टी, मिच्छादिट्टी, णो सम्मामिच्छादिट्टी, ४ णो णाणी, दो अण्णाणा णियमं, ५ समुग्घाया आदिल्ला तिण्णि, ६ आउं, ७ अन्झवसाणा, ८ अणुवंधो य जहेव असण्णीणं । अवसेसं जहा पंढमगमए जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अभहियाई, एवइयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy