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भगवती सूत्र - श. २४ उ १ गंज्ञी तिर्यंच का नरकोपपात
६२ उत्तर - एवं मोचैव पढमो गमओ णिरवसेसों भाणियव्वो जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अतोमुहुत्तमव्भहियाई, उकोसेणं चत्तारि पुचकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अव्भहियाओ, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गइरागई करेज्जा २ | भावार्थ - ६२ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
६२ उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत् (सूत्र ५६ से ५८ तक ) प्रथम गमक पूरा यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि तक यावत् गमनागमन करता है । २ ।
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६३ - सो चेव उक्कोसका लट्ठिईएस उववण्णो जहण्णेणं सागरोवमट्ठिए, उक्कोसेण वि सागरोवमट्टिईएस उववज्जेज्जा । अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमो णेयव्वो जाव कालादेसेणं जहण्णेणं साग़रोवमं अंतोमुहुत्तमन्भहियं, उक्को सेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा जाव करेजा ३ |
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भावार्थ - ६३ - यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो, तो जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट भी एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरfasों में उत्पन्न होता है । शेष परिमाणादि से ले कर भवादेश तक का कथन पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान है, यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है । ३ ।
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