________________
शतक १८ उद्देशक २
कार्तिक श्रेष्ठी (सेठ)-शक्रेन्द्र का पूर्वभव
१-तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा णामं णयरी होत्था । वण्णओ । बहुपुत्तिए चेइए । वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जु वासड् । तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वजपाणी पुरंदरे-एवं जहा सोलसमसए विइयउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमाणेणं आगओ । णवरं एत्थ आभियोगा वि अत्थि, जाव बत्तीसइविहं णट्टविहिं उवदंसेइ, उवदंसेत्ता जाव पडिगए ।
___ भावार्थ-१-उस काल उस समय में विशाखा नाम की नगरी थी। वर्णन । वहाँ बहुपुत्रिक नामक उद्यान था। वर्णन । एक समय वहां श्रमण . भगवान् महावीर स्वामी पधारे यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल . उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के दूसरे उद्देशक के अनुसार यावत् वह दिव्य यान में बैठ कर आया । अन्तर यह कि यहाँ आभियोगिक देव भी साथ थे यावत् इन्द्र ने बत्तीस प्रकार की नाट्य विधि दिखलाई और जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में लौट गया।
२ प्रश्न-'भंते ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी-जहा तईयसए ईसाणस्स तहेव कूडागारदिळंतो, तहेव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org