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___२९५४ भगवती सूत्र-श. २१ वर्ग ७ उ. १-१० अभ्रम्ह आदि के मूल की उत्पत्ति
करवर-वदसुंठ-विभंगु-महुरयण-थुरग-सिप्पिय सुंकलितणाणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति० ?
१ उत्तर-एवं एत्थ वि दस उद्देसगा णिरवसेसं जहेव वंसवग्गो।
- ॥ एगवीसइमे सए छटो वग्गो समत्तो ॥
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! सेडिय, भंतिय (भण्डिय), दर्भ, कौन्तिय, - दर्भकुश, पर्वक, पोदेइल (पौदिना) अर्जुन (अंजन) आषाढक, रोहितक, समू,
अवखीर (तवखीर), भुस, एरंड, कुरुकुन्द, करवर, सुंठ, विभंगु, मधुरतृण थुरग, शिल्पिक और सुंकलितृण, इन सब वनस्पतियों के मूल में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! चौथे वंश-वर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिये। ॥ इक्कीसवें शतक का छठा वर्ग सम्पूर्ण ॥ .
AVAAMAAN शतक २१ वर्ग ७ उद्देशक १-१०
अक्षरुह आदि के मूल की उत्पत्ति
१ प्रश्न-अह भंते ! अन्भरुह-चोयाण-हरितग-तंदुलेजग-तणवत्थुल-चोरग मजारयाई चिल्लि-यालक्क दगपिप्पलिय-दग्वि-सोत्थिय.
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