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________________ भगवती मूत्र-ग. २० ३.१० चौरासी-मजित जिया वि' । एवं जाव थणियकुमारा । पुढविक्काइया तहेव पच्छिल्ल. एहिं, णवरं अभिलावो चुलसीईओ, एवं जाव वणस्मइकाइया । दिया जाव वेमाणिया जहा णेरड्या । कठिन शब्दार्थ-चुलसीइसमज्जिया-चतुरशीति (चौरासी) समजित । भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक चौरासी-समजित हैं या नोचौरासी-सजित हैं, या चौरासी-समजित और नो-चौरासी-समजित है, या अनेक चौरासी-प्समजित हैं, या अनेक चौरासी-समजित और नो-चौरासीसमजित हैं ? २२ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक चौरासी-सजित भी हैं और यावत् अनेक चौरासी-समर्जित और नो-चौरासी-समजित भी हैं । . प्रश्न-हे भगवन् ! उपरोक्त कथन का क्या कारण है ? उत्तर-हे गौतम ! जो नैरयिक एक साथ, एक समय में चौरासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चौरासी-समजित हैं। जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तिरयासी प्रवेश करते हैं, वे नो-चौरासी-समजित हैं। जो नरयिक एक साथ, एक समय में चौरासी और अन्य जघन्य एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्ट तिरयासी प्रवेश करते हैं, वे चौरासी-सजित और नो-चौरासीसमजित हैं । जो नरयिक एक साथ, एक समय में अनेक चौरासी प्रवेश करते हैं, वे अनेक चौरासी-सजित हैं। जो नैरयिक एक साथ, एक समय में अनेक चौरासी और अन्य जघन्य एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्ट तिरयासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक चौरासी-समजित और नो-चौरासी-सजित हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि यांवत् सजित भी है । इस प्रकार यावत् स्तनिकुमार पर्यन्त । पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में अनेक चौरासीसमजित तथा अनेक चौरासी और नो चौरासी-समजित-ये पिछले दो भंग जानना चाहिये । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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