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________________ - - -श. २. उ. १० कनि-अकति मंचित याणं अवत्तव्वगसंचियाण य कयरे कयरे जाव विसेसाहिया वा ? १२ उत्तर-गोयमा ! सम्बत्थोवा गैरइया अवत्तव्यगसंचिया, कइसंचिया संखेबगुणा, अकइसंचिया असंखेजगुणा, एवं एगिदियवबाण जाव वेमाणियाणं अप्पाबहुगं, एगिंदियाणं णत्थि अप्पाबहुगं। __१३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! सिद्धाणं कइसंचियाणं अवत्तव्वगसंचियाण य कयरे कयरे जाव विसेसाहिया वा ? १३ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा कइमंचिया, अवत्तव्वगसंचिया संखेजगुणा। भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! सिद्ध कतिसंचित हैं, इत्यादि प्रश्न ? ११ उत्तर-हे गौतम ! सिद्ध कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित हैं, अकतिसंचित नहीं हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि सिद्ध यावत् अवक्तव्यसंचित हैं ? उत्तर-हे गौतम ! जो सिद्ध संख्यात प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं और जो सिद्ध एक-एक प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित है। इसलिये सिद्ध यावत् अवक्तव्यसंचित हैं। १२ प्रश्न-हे भगवन् ! कतिसंचित, अतिसंचित और अवक्तव्यसंचित नरयिकों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! अवक्तव्यसंचित नैरयिक सब-से थोड़े हैं । उनसे कतिसंचित नैरयिक संख्यात गुण है और अकतिसंचित उनसे असंख्यात गुण हैं। इस प्रकार एकेन्द्रिय के सिवाय यावत् वैमानिकों तक अल्प-बहुत्व कहनी चाहिये। एकेन्द्रियों का अल्प-बहुत्व नहीं है । १३. प्रश्न-हे भगवन् ! कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित सिद्धों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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