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________________ २९२४ भगवता सूत्र श. २० उ. १० कति अकति संचित उत्तर - हे गौतम ! जो नैरयिक नरक-गति में एक साथ संख्यात प्रवेश करते हैं (उत्पन्न होते हैं) वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरथिक एक-एक प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिये । १० प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक कतिसंचित है, इत्यादि प्रश्न । १० उत्तर - हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, कतिसंचित नहीं, अवक्तव्यसंचित भी नहीं, किन्तु अकतिसंचित है । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि यावत् अवक्तव्यसंचित नहीं है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक एक साथ असंख्य प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, इसलिये वे अकतिसंचित हैं, परन्तु यावत् अवक्तव्यसंचित नहीं । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये । बेइन्द्रिय से ले कर यावत् वैमानिक तक का कथन नैरयिकों के समान है । ११ प्रश्न - सिद्धाणं पुच्छा । ११ उत्तर - गोयमा ! सिद्धा कइसंचिया, णो अकड़संचिया, अवत्तव्वगसंचिया वि । प्रश्न - सेकेण्डेणं जाव 'अवत्तव्वगसंचिया वि' ? उत्तर - गोयमा ! जे णं सिद्धा संखेज्जपणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा कसंचिया, जेणं सिद्धा एकरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा अवत्तव्वगसंचिया, से तेणट्टेणं जाब अवत्तव्वगसंचिया वि । १२ प्रश्न - एएस णं भंते! णेरइयाणं कइसंचियाणं अकसंचि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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