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________________ भगवती सूत्र - श. २० उ ९ चारण-मुनि की तीव्र गति २९४७ इतना शीघ्र कहा है। 1 ९ प्रश्न - हे भगवन् ! जंघाचारण की ऊर्ध्व- गति का विषय कितना कहा है ? ९ उत्तर - हे गौतम! जंघाचारण एक उत्पात से पण्डकवन में समवसरण करता है । फिर वहां चैत्य वन्दन करता है। वहां से लौटते हुए एक उत्पात से नन्दनवन में समवसरण करता है। वहां चंत्य वन्दन करता है । फिर दूसरे उत्पात से यहां आ कर चैत्य वन्दन करता है। हे गौतम! जंघाचारण का ऐसा ऊर्ध्व गति का विषय कहा है । वह जंघाचारण उस लब्धि प्रयोग सम्बन्धी पाप-स्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण किये बिना यदि काल कर जाय, तो आराधक नहीं होता और उस पाप स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण कर के काल करे, तो वह आराधक होता है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' - कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन -लब्धि के प्रभाव से आकाश में अतिशय गमन करने की शक्ति वाले मुनि को 'चारण' कहते हैं । चारण दो प्रकार के होते हैं । यथा - विद्याचारण अर्थात् पूर्वगत श्रुत से गमन करने की लब्धि को प्राप्त मुनि विद्याचारण' कहलाते हैं । जंघा के व्यापार से गमन करने की लब्धि वाले मुनि 'जंघाचारण' कहलाते हैं । उपर्युक्त विधिपूर्वक निरन्तर बेले-वेले की तपस्या करने वाले मुनि को विद्याचारण लब्धि प्राप्त होती है और तेले-तेले की तपस्या करने वाले मुनि को जंघाचारण लब्धि प्राप्त होती है । विद्याचारण की अपेक्षा जंघाचारण की गति सात गुण शोघ्र होती है । लब्धि का प्रयोग करना प्रमाद है। लब्धि का प्रयोग किया हो और उसकी आलोचना नहीं की, तो उसे चारित्र की आराधना नहीं होती । विद्याचारण का गमन दो उत्पात से और आगमन एक उत्पात से होता है तथा जंघाचारण का गमन एक उत्पात से और आगमन दो उत्पात से होता है । यह उस लब्धि का स्वभाव समझना चाहिये । इस विषय में किन्हीं आचार्यों का कथन है कि - विद्याचारण की विद्या आतेसमय विशेष अभ्यास वाली हो जाती है, किन्तु गमन के समय वह वैसी अभ्यास वाली नहीं होती । इसलिये आते समय तो वह एक ही उत्पात से यहाँ आ जाता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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