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भगवती मूत्र-स. २० उ. ६ आहार ग्रहण उत्पत्ति के पूर्व या पश्चात्
गस्स य कप्पस्स अंतरा समोहए, पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं लंत. गस्स महासुक्कस्म कप्पस्स य अंतरा समोहए, पुणरवि जाव अहे. सत्तमाए, एवं महासुक्कस्स सहस्सारस्स य कप्पस्स अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं सहस्सारस्स आणयपाणकप्पाणं य अंतरा पुणरवि जाव अहेमत्तमाए. एवं आणय-पाणयाणं आरण-अच्चुयाण य कप्पाणं अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं आरण-च्चुयाणं गेवेजविमाणाण य अंतरा जाव अहेसत्तमाए, गेवेजविमाणाणं अणुत्तरविमाणाण य अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं अणुत्तरविमाणाणं ईसीपभाराए य पुणरवि जाव अहेसत्तमाए उववाएयब्वो ।१।
___ भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्म, ईशान और सनत्कुमार माहेन्द्र कल्प के नध्य में मरण-समुदवात कर के शर्करापृथ्वी में पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न ।
५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार. यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक उपपात कहना चाहिये । इस प्रकार सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक कल्प के मध्य में मरण-समुद्घात कर के पुन: रत्नप्रभा से ले कर यावत् अध:सप्तम पृथ्वी तक उपपात जानना चाहिये । इस प्रकार ब्रह्मलोक और लान्तक के अन्तराल में मरण-समुद्घातपूर्वक यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक । इस प्रकार लान्तक और महाशुक्र कल्प के अन्तराल में, महाशुक्र और सहस्रार-कल्प के मध्य में, सहस्रार और आनत तथा प्राणत-कल्प के बीच में आनत, प्राणत और आरण तथा अच्युत-कल्प के मध्य में आरण, अच्युत और ग्रेवेयक विमानों के आंतरे में, ग्रेवेयक विमान और अनुत्तर विमानों के अन्तराल में तथा अनुत्तर विमान और ईषत्प्रागभारापृथ्वी के बीच में मरण-समुद्घातपूर्वक रत्नप्रभा से
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