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________________ भगवती सूत्र - २० उ ५ परमाणु और स्कन्ध के वर्णादि २८८५ उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है। इसके चार भेंग कहने चाहिये । (२) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत, अनेक देश उष्ग, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । (३) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश गुरु, एक देश लघु, अनेक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । ( ४ ) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश गुरु, एक देश लघु, अनेक देश शीत, अनेक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । इस प्रकार चार चतुष्क के १६ भंग होते हैं । (२) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश गुरु, अनेक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष । इस प्रकार 'गुरु' पद को एक वचन में और 'लघु' पद को बहुवचन में रख कर पूर्ववत् १६ भंग कहने चाहिये । (३) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, अनेक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के १६ भंग । ( ४ ) कदाचित् एक देश कर्कश, एक देश मृदु, अनेक देश गुरु, अनेक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के १६ भंग । ये सब मिला कर ६४ भंग 'कर्कश और मृदु' को एक वचन में रखने से बनते हैं । ( २ ) इन्ही भंगों में 'कर्कश' को एक वचन में और मृदु को बहुवचन में रख कर पूर्ववत् ६४ भंग कहने चाहिये । (३) 'कर्कश' को बहुवचन में और 'मृदु' को एक वचन में रख कर फिर पूर्ववत् ६४ भंग कहने चाहिये । (४) 'कर्कश' और 'मृदु' दोनों को बहुवचन में रख कर फिर ६४ भंग कहने चाहिये यावत् अनेक देश कर्कश, अनेक देश मृदु, अनेक देश गुरु, अनेक देश लघु, अनेक देश शीत, अनेक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । यह अन्तिम भंग है । ये सब मिला कर आठ स्पर्श के २५६ भंग होते हैं । इस प्रकार बादर परिणत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के सब संयोग के मिला कर १२९६ भंग स्पर्श सम्बन्धी होते हैं । विवेचन - इस प्रकार बादर अनन्तप्रदेशी - स्कन्ध में स्पर्श के चतुःसंयोगी १६, पंच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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