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भगवती सूत्र-श. १९ उ ८ जीव-निवृत्ति आदि
२३ उत्तर-गोयमा ! तिविहा जोगणिव्वत्ती पंण्णत्ता, तं जहामणजोगणिवत्ती, क्यजोगणिवत्ती, कायजोगणिवत्ती । पवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइविहो जोगो।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! योग-निर्वृत्ति कितने प्रकार की है ?
२३ उत्तर-हे गौतम ! योग-निर्वृत्ति तीन प्रकार की कही गई है। यथा-मनोयोग-निर्वत्ति, वचनयोग-निर्वत्ति और काययोग-निर्वत्ति । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जिसके जितने योग हों।
२४ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! उवओगणिव्वत्ती पण्णता ?
२४ उत्तर-गोयमा! दुविहा उवओगणिवत्ती पण्णत्ता, तं जहासागारोवओगणिव्वत्ती, अणगारोवओगणिव्वत्ती । एवं जाव वेमाणि. याणं (अत्र संग्रहणीगाथे वाचनान्तरे-)
"जीवाणं णिवत्ती कम्मप्पगडी सरीरणिवत्ती। सबिंदियणिवत्ती भासा य मणे कसाया य । वणे गंधे रसे फासे संठाणविहि व होइ बोद्धव्यो। लेसा दिट्ठी गाणे उवओगे चेव जोगे य॥"
ॐ 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति'* ॥ एगृणवीसइमे सए अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! उपयोग-निर्वृत्ति कितने प्रकार की है ?
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