SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८०६ भगवती सूत्र-श. १९ उ. ६ द्वीप-समुद्र जोइसियमंडिउद्देसगवज्जो भाणियब्वो जाव परिणामो, जीवउववाओ, जाव अणंतखुत्तो। 3 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' ॥ एगणवीसइसे सए छ?ओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! द्वीप और समुद्र कहां और कितने हैं ? हे भगवन् ! द्वीप-समुद्रों का आकार कसा कहा गया है ? .. १ उत्तर-हे गौतम ! जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में ज्योतिष्कमण्डित उद्देशक को छोड़ कर, द्वीप-समुद्रोद्देशक यावत् 'परिणाम,' 'जीवों का उत्पाद यावत् अनन्त बार, तक जानना चाहिये। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के द्वीप-समुद्रोद्देशक में ज्योतिषी मण्डल का भी वर्णन किया गया है, किन्तु उसे यहां नहीं कहना चाहिये । स्वयम्भूरमण समुद्र तक असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं । इनमें से जम्बूद्वीप का संस्थान चन्द्रमा या स्थाली के समान गोल हैं । शेष सब द्वीप समुद्रों का संस्थान चूड़ी के समान गोल है । क्योंकि ये एक-दूसरे को चारों ओर से घेरे हुए हैं । इनमें जीव पहले अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। ॥ उन्नीसवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ VERY DIO Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy