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________________ २८०० भगबती सूत्र-श. १९ उ. ४ देवादि के महाप्रवादि चतुष्क १७ उत्तर-णो इणटे समझे । एवं चउत्थो भंगो भाणियव्वो, सेसा पण्णरस भंगा खोडेयव्वा, एवं जाव थणियकुमारा। ____१८ प्रश्न-सिय भंते ! पुढविकाइया महासवा महाकिरिया महावेयणा महाणिजरा ? १८ उत्तर-हंता सिया। प्रश्न-एवं जाव सिय भंते ! पुढविकाइया अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पणिज्जरा ? उत्तर-हंता सिया, एवं जाव मणुस्सा, वाणमंतर-जोइसिय वेमा. णिया जहा असुरकुमारा। * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ * ॥ एगूणवीसइमे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्वाई-खोडेयवा-निषेध करना चाहिये। __ भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? . १७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस प्रकार यहां केवल चौथा भंग कहना चाहिये । शेष पन्द्रह मंगों का निषेध करना चाहिये । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये । १८ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? १८ उत्तर-हाँ, गोतम ! है । इस प्रकार यावत् । प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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