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________________ भगवती मूत्र-१९ उ. ३ स्थावर जीवों की पीड़ा का उदाहरण २७९१ भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव के शरीर को कितनी बड़ी अवगाहना कही गई है ? ३० उत्तर-हे गौतम ! जैसे चातुरन्त (चारों दिशा के स्वामी) चक्रवर्ती राजा को चन्दन घिसने वाली दासी हो, जो तरुणी, बलवती, युगवती (सुषम दुःषमा आदि तीसरे चौथे आरे में उत्पन्न हुई) वयप्राप्त, नीरोग इत्यादि वर्णन युक्त यावत् अत्यन्त कला-कुशल हो । (चर्मेष्ट, द्रुघण और मौष्टिक आदि व्यायाम के साधनों से मजबूत बने हुए शरीर वाली, इत्यादि विशेषण यहां नहीं कहने चाहिये । क्योंकि इन व्यायाम के साधनों की प्रवृत्ति स्त्री के लिये असम्भव एवं अयोग्य होने से इन विशेषणों के कथन का निषेध किया गया है) ऐसी दासी, चूर्ण पीसने की वज्रमयी कठोर शिला पर, वज्रमय कठोर शिलापुत्रक (लोढ़े) से लाख के गोले परिमाण एक बड़े पृथ्वीकाय का पिण्ड ले कर बारंबार इकट्ठा करती हुई और संक्षेप करती हुई पीसे यावत-'यह मैं अभी तुरन्त पीस देती हूँ'-ऐसा विचार कर इक्कीस बार पीसे, तो हे गौतम ! उनमें से कुछ पृथ्वीकायिक जीवों का उस शिला और शिलापुत्रक (पोसने का लोढ़ा) का मात्र स्पर्श होता है और कुछ का स्पर्श भी नहीं होता। कुछ का संघर्ष होता है और कुछ का संघर्ष भी नहीं होता, कुछ को पीड़ा होती है और कुछ को पीड़ा नहीं होती। कुछ मरते हैं और कुछ नहीं मरते तथा कुछ पोसे जाते हैं और कुछ पीसे भी नहीं जाते । हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव के शरीर को इतनी बड़ी (सूक्ष्म) अवगाहना होती है। स्थावर जीवों की पीड़ा का उदाहरण ३१ प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! अकंते समाणे केरिसियं वेयणं पचणुन्भवमाणे विहरइ ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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