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________________ भगवती मूत्र-श. १९ उ. ३ पृथ्वीकायिक गरीर की विशालता २७८९ असंखेजाणं मुहुमपुढविकाइयसरीराणं जावइया सरीरा से एगे बायरवाउसरीरे, असंखेजाणं बायरवाउकाइयाणं जावइया सरीग से एगे बायरतेउसरीरे, असंखेजाणं वायरतेउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बायरआउसरीरे, असंखेजाणं बायरआउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बायरपुढविसरीरे । एमहालए णं गोयमा ! पुढविसरौरे पण्णत्ते । भावार्थ-२९ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर कितना बड़ा कहा गया है ? २९ उत्तर-हे गौतम ! अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म वायुकाय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अग्निकाय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अप्काय का शरीर होता है। असंख्य सूक्ष्म अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर वायुकाय का शरीर होता है । असंख्य बादर कायकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अग्निकाय का शरीर होता है । असंख्य बादर अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक गावर अप्काय का शरीर होता है। असंख्य बादर अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर पृथ्वीकाय का शरीर होता है । हे गौतम ! (अप्कायादि दूसरी कायों की अपेक्षा) इतना बड़ा पृथ्वीकाय का शरीर होता है। विवेचन-अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव मिल कर एक औदारिक शरीर बांधते हैं, ऐसे असंख्य औदारिक शरीरों की जितनी अवगाहना होती है, उतनी एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव के शरीर की अवगाहना होती है। क्योंकि पहले यह बतलाया जा चुका है कि सूक्ष्म वनस्पति की अवगाहना की अपेक्षा सूक्ष्म वायुकायिक जीवों को अवगाहना असंख्यात गुण होती है । इसी प्रकार आगे-आगे तेउकाय आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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