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________________ भगवती सूत्र-ग. १९ उ. ३ पृवीकाय में देण्या, दृष्टि, ज्ञान २०७३ ४ प्रश्न-ते णं भंत ! जीवा किं णाणी, अण्णाणी ? ४ उत्तर-गोयमा ! णो णाणी, अण्णाणी, णियमा दुअण्णाणी, तं जहा-मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य । ४ । भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! चार लेश्याएँ कही गई हैं। यथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और तेजोलेश्या। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्मिथ्यादृष्टि है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! वे सम्यग्दष्टि नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि हैं । वे सम्यगमिथ्यादष्टि भी नहीं है। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? ४ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं। उन्हें दो अज्ञान अवश्य होते हैं । यथा-मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान । .५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी ? ५ उत्तर-गोयमा ! णो मणजोगी, णोवयजोगी, कायजोगी।५। ६ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता ? ६ उत्तर-गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। ६ । भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन ! पृथ्वीकायिक जीव क्या मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, या काययोगी हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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