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भगवती सूत्र-श. ५९ उ. ३ पृथ्वीकाय में लेट्या, दृष्टि, जान
पच्छा आहारेंति वा परिणामेति वा सरीरं वा बंधति ?
१ उत्तर-णो इणठे समठे । पुढविकाइयाणं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधति, प० २ बंधित्ता तओ पच्छ आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधति । १ ।
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! कदाचित् दो यावत् चार-पाँच पृथ्वीकायिक मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं, बांध कर पीछे आहार करते हैं, फिर उस आहार का परिणमन करते हैं और फिर इसके बाद शरीर का बंध करते हैं ?'
१ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव पृथक्-पृथक् आहार करने वाले हैं और उस आहार को पृथक्-पृथक् परिणमन करते हैं, इसलिये वे पृथक-पृथक् शरीर बांधते हैं और इसके पश्चात् आहार करते हैं, उसे परिणमाते हैं और फिर शरीर बांधते हैं।
पृथ्वीकाय में लेश्या, दृष्टि, ज्ञान २ प्रश्न-तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ?
२ उत्तर-गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, णीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेरसा । २ ।
३ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ?
.३ उत्तर-गोयमा ! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्टी, णो सम्मामिच्छा. दिट्टी।३।
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