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________________ भगवती सूत्र-स. १८ : १० यापनीय २७५७ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! आपके यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुक विहार है ? ८ उत्तर-हां, सोमिल ! मेरे यात्रा भी है, यापनीय भी है, अव्याबाध भी है और प्रासुक विहार भी है। ___९ प्रश्न-हे भगवन् ! आपके यात्रा कैसी है ? ९ उत्तर-हे सोमिल ! तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगों में जो मेरी यतना (प्रवृत्ति) है, वह मेरी यात्रा है। . यापनीय १० प्रश्न-किं ते भंते ! जवणिजं ? १० उत्तर-सोमिला ! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इंदियजवणिजे य णोइंदियजवणिज्जे य । ११ प्रश्न-से किं तं इंदियजवणिजे ? ११ उत्तर-इंदिय० २ ज मे सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदियजिभिदिय-कासिंदियाइं णिरूवहयाइं वसे वटुंति । सेत्तं इंदियजवणिजे। १२ प्रश्न-से किं तं णोइंदियजवणिजे ? १२ उत्तर-णोइंदियजवणिजे जं मे कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिण्णा णो उदीरेंति, सेत्तं णोइंदियजवणिजे, सेत्तं जवणिजे । भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! आपके यापनीय क्या है.? १० उत्तर-हे सोमिल ! यापनीय दो प्रकार का कहा गया है । यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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