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________________ .. २७५६ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १० यात्रा कैसी करते हैं ? चैत्य में पधारे यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। श्रमण भगवान महावीर स्वामी का आगमन जान कर, सोमिल ब्राह्मण को विचार उत्पन्न हुआ-'पूर्वानुपूर्वी (अनुक्रम) से विचरते हुए, ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक पधारते हुए श्रमण ज्ञातपुत्र यहाँ पधारे हैं, यावत् दयुतिपलास उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण कर यावत् विचरते हैं। में श्रमण ज्ञातपुत्र के पास जाऊं और अर्थ यावत् व्याकरण (प्रश्नों के उत्तर) पूछू । यदि वे मेरे अर्थ यावत् प्रश्नों का उत्तर देंगे, तो मैं उन्हें वन्दना-नमस्कार करूंगा यावत् उनको पर्युपासना करूंगा। यदि वे मेरे अर्थ और प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकेंगे, तो मैं उन अर्थ और उत्तरों से उन्हें निरुत्तर करूंगा,'-ऐसा विचार कर, स्नान कर यावत् शरीर को अलंकृत कर के अपने एक सौ शिष्यों के साथ पैदल चलता हुआ वाणिज्य ग्राम नगर के मध्य हो कर दयुतिपलास उद्यान में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निकट आया और इस प्रकार पूछने लगा यात्रा कैसी करते हैं ? ८ प्रश्न-'जत्ता ते भंते ! जवणिज,अव्वाबाह, फासुयविहारं ?' ८ उत्तर-सोमिला ! 'जत्ता वि मे, जवणिज पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे। ९ प्रश्न-किं ते भंते ! जत्ता ? ९ उत्तर-सोमिला ! जं मे तव-णियम-संजम-सज्झाय झाणावरसयमाइएसु जोगेसु जयणा, सेत्तं जत्ता । ___ कठिन शब्दार्थ-जवणिज्जं-यापनीय, जत्ता-यात्रा, अम्बाबाह-अव्याबाध-व्याधि रहित । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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