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________________ भगवती मूत्र-१ उ. . पंचाग्नि कायमंय लोक प्रदेशों से स्पष्ट है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पष्ट होता है। प्रश्न-हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट है ? उत्तर-हे गौतम ! सात प्रदेशों से स्पष्ट होता है। प्रश्न- हे भगवन ! जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट है ? उत्तर-हे गौतम ! शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के प्रदेश के समान जानना चाहिए? २३ प्रश्न-हे भगवन ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट है ? २३. उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार जीवास्तिकाय के एक प्रदेश के विषय में कयन किया, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिये। । २४ प्रश्न-दो भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपएमेहिं पुट्टा ? २४ उत्तर-गोयमा ! जहण्णपए छहिं, उक्कोसपए वारसहिं । एवं अहम्मत्थिकायपएसेहिं वि। प्रश्न-केवइएहिं आगासस्थिकाय ? उत्तर-वारसहिं, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। . • २५ प्रश्न-तिणि भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्टा ? २५ उत्तर-जहण्णपए अहिं, उक्कोसपए सत्तरसहिं । एवं अहम्मत्थिकायएसेहिं वि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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