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भगवती सूत्र-ग. १३ उ. ४ पचास्तिकायमय लोक
उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है, तो नियमतः अनन्त समयों से स्पष्ट होता है ।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होता है ?
२० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
उत्तर-हे गौतम ! जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के प्रदेश के समान है।
२१ प्रश्न-हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट है ? .
२१ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् स्पृष्ट है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं है । यदि स्पृष्ट है, तो जघन्य पद में एक, दो, तीन या चार प्रदेशों से स्पृष्ट होता है और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पष्ट होता है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पृष्ट होता है ।
प्रश्न-हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट है ? । उत्तर-हे गौतम ! छह प्रदेशों से स्पष्ट है। प्रश्न-हे भगवन् ! जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् नहीं । यदि स्पष्ट है, तो नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पष्ट होता है । इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों से और अद्धा-काल के समयों से स्पर्शना जाननी चाहिये।
२२ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है।
२२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात
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