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________________ भगवती मूत्र-स. .: 3. ४ पंचास्तिक समय लोक १७ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवास्तिकाय के द्वारा जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है ? १७ उत्तर-हे गौतम ! जीवास्तिकाय के द्वारा आभिनिबोधिक ज्ञान की अनन्त पर्यायें श्रुतज्ञान की अनन्त पर्यायें प्राप्त करता है, इत्यादि दूसरे शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक के अनुसार, यावत वह ज्ञान और दर्शन के उपयोग को प्राप्त होता है । जीव का लक्षण 'उपयोग' रूप है। १८ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय से जीवों को क्या प्रवृत्ति होती है ? १८ उत्तर-हे गौतम ! पुद्गलास्तिकाय से जीवों के औदारिक, वक्रिय, आहारक, तेजस, कार्मण, श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, मनोयोग, वचनयोग, काययोग और श्वासोच्छ्वास का ग्रहण होता है । पुद्गलास्तिकाय लक्षण 'ग्रहण' रूप है । विवेचन-यह लोक पाँच अस्तिकाय है । 'अस्ति' शब्द का अर्थ है-- प्रदेश' आर 'काय' शब्द का अर्थ है 'रागि', प्रदेशों की राशि । प्रदेशों की राशि वाले द्रव्यों को 'अस्तिकाय कहते हैं । अस्तिकाय पांच है। यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय ओर पुद्गलास्तिकाय । धर्मास्तिकाय-गति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की गति में जो सहायक हो. उसे 'धर्मास्तिकाय' कहते हैं । जैसे-मछली की गति में पानी महायक होता है। अधर्मास्तिकाय-स्थिति परिणाम वाले जीव ओर पुद्गलों की स्थिति में जो सहायक हो । जैसे-विधाम चाहने वाले पथिक के ठहरने में छायादार वृक्ष सहायक होता है। आकाशास्तिकाय-जो जीवादि द्रव्यों को रहने के लिये अवकाश दे, वह आकागास्तिकाय है । जैसे-एक दीपक के प्रकाश से भरे हुए स्थान में, अनेक दीपकों का प्रकाश समा सकता है। जीवास्तिकाय-जिसमें उपयोग गुण हो, उसे जीवास्तिकाय कहते हैं । पुद्गलास्तिकाय-जिसमें वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श हो और जो इन्द्रियों में ग्राह्य हो तथा मिलन, बिछुड़न वाला हो, वह पुद्गलास्तिकाय है। प्रत्येक 'अस्तिकाय' के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा पांच-पांच भेद हैं । द्रव्य की अपेक्षा धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है । क्षेत्र की अपेक्षा लोक परिमाण (सर्व लोक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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