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भगवती सूत्र-]. १७ उ २ रूपी, अपी नही बनता सर्वज्ञ माक्षी
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बुज्झामि, अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि, मए एयं णायं, मए एयं दिटुं, मम एयं बुधं, मए एयं अभिसमण्णागयं-'ज णं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स, सकम्मरस. सरागस्स, सवेयगस्स. समोहस्स, सलेसम्प्स, ससरीरस्स, ताओ मगगओ अविप्पमुक्कस्स एवं पण्णायह, तं जहा-कालते वा जाव सुविकलते वा सुभिगंधत्ते वा दुभिगंधत्ते वा तित्तते वा जाव महुरत्ते वा, कक्खडत्ते वा जाव लुक्खत्ते वा, से तेणटेणं गोयमा ! जाव चिट्टित्तए ।
११ प्रश्न-सच्चेव णं भंते ! से जीवे पुव्वामेव अरूवी भवित्ता पभू रूविं विउवित्ता णं चिट्ठित्तए ?
११ उत्तर-णो इणटे समढे जाव चिट्ठित्तए । गोयमा ! अहं एयं जाणामि जाव जं णं तहागयस्स जीवस्स अरूविस्स, अकम्मस्स, , अरागस्त, अवेदस्म, अमोहस्स, अलेमस्स, असरीरस्स, ताओ सरीराओ विप्पमुक्कस्स णो एवं पण्णायइ, तं जहा-कालत्ते वा जाव लुक्खत्ते वा से तेणटेणं जाव चिट्ठित्तए वा।
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के ॥ सत्तरसमे सए बीओ उद्देसो समत्तो ॥ कठिन-शब्दार्थ-पण्णायइ-ज्ञात होता है ।
१० प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, पहले रूपी होकर (मूर्त स्वरूप को धारण कर) पीछे अरूपीपन (अमूर्त रूप) की विक्रिया
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