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________________ २६१२ भगवती सूत्र - १७७ नहीं बना साक्षी गौतम ! में इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपित करता हूँ कि प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य में वर्तमान प्राणी जीव है और वही जीवात्मा है यावत् अनाकारोपयोग में वर्तमान प्राणी जीव है और वही जीवात्मा है । विवेचन - "प्राणातिपातादि में प्रवर्तमान जीव अर्थात प्रकृति और जीवात्मा ( पुरुष ) ये दोनों परस्पर भिन्न हैं-" यह सांख्य दर्शन का मत है। सांख्य लोग प्रकृति को कर्ता और पुरुष को अकर्ता तथा भोक्ता मानते हैं । उपनिषद् भी जीव (अन्तःकरण विशिष्ट चैतन्य ) को कर्ता और जीवात्मा (ब्रह्म) को अकर्ता मानते हैं। उनके मतानुसार जीव और ब्रह्म का औधिक भेद है। यहाँ ये दोनों मत अन्यतीर्थिक रूप से ग्रहण किये गये है । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ( जैन सिद्धांत) का मन्तव्य है कि जीव अर्थात् जीव विशिष्ट शरीर और जोवात्मा (जीव ) ये कथचित् एक हैं । इन दोनों में अत्यन्त भेद नहीं है । अत्यन्त भेद मानने पर देह से स्पृष्ट वस्तु का ज्ञान जीव को नहीं हो सकेगा । तथा शरीर द्वारा किये हुए कर्मों का वेदन आत्मा को नहीं हो सकेगा। दूसरे के किये हुए कर्मों का दूसरे द्वारा संवेदन मानने पर अकृताभ्यागम दोप आयेगा तथा अत्यन्त अभेद मानने पर परलोक का अभाव हो जायगा । इसीलिये इनमें कथंचित् भेद और कथचित् अभेद है । रूपी, अरूपी नहीं बनता । सर्वज्ञ साक्षी १० प्रश्न - देवे णं भंते ! महिड्दिए जाव महेसक्खे पुब्वामेव रूवी भवित्ता पक्ष अरूविं विउच्चित्ताणं चिट्टित्तए ? १० उत्तर - णो इण समड़े । प्रश्न - से केणेणं भंते ! एवं बुच्चइ - 'देवे णं जाव णो पक्ष अरूवि विउव्वित्ताणं चिट्टित्तए ? उत्तर - गोयमा ! अहमेयं जाणामि, अहमेयं पासामि, अहमेयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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