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भगवती सुत्र-श ५.७ उ ५ औदारिका
'यणिफण्णे य; एवं एएणं अभिलावेणं जहा अणुओगदारे छण्णामं तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं जाव सेत्तं सण्णिवाइए भावे ।
* से भंते ! सेवं भंते ! त्ति *
॥ सत्तरसमसए पढमो उद्देसो समत्तो । भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! भाव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ...
१६ उत्तर-हे गौतम ! भाव छह प्रकार के कहे गये हैं । यथा-औदयिक, औपमिक यावत् सान्निपातिक ।
१७ प्रश्न-हे भगवन ! औदयिक भाव, कितने प्रकार का कहा गया है ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! औदयिक भाव, दो प्रकार का कहा गया है, यथा-औदयिक और उदयनिष्पन्न । इस अभिलाप द्वारा अनुयोगद्वार सूत्रानुसार छह नामों की वक्तव्यता सान्निपातिक भाव तक कहनी चाहिये ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-औदयिक भाव के दो भेद हैं-औदयिक और उदय निप्पन्न । आठ कम- . प्रकृतियों का उदय 'औदयिक' कहलाता है। उदय निप्पन्न के दो भेद हैं । यथा-जीवोदय निष्पन्न और अजोवोदय निष्पन्न । कर्म के उदय से जीव के होने वाले नारक, तिर्यच आदि पर्याय 'जीवोदय' निष्पन्न कहलाते हैं । कर्म के उदय से अजीव में होने वाले पर्याय 'अजीवोदय निष्पन्न" कहलाते हैं । जैसे कि-औदारिकादि शरीर तथा औदारिकादि शरीर में रहे हए वर्णादि, ये औदारिक शरीर नामकमं के उदय से पुद्गल-द्रव्य रूप अजीव में निष्पन्न होने मे 'अजीवोदप निप्पन्न' कहलाते हैं।
____ अनुयोगद्वार सूत्र में एक नाम से ले कर दस नाम आदि विषयक कथन है । उन में मे छह नाम की वक्तव्यता में छह भावों का स्वरूप बतलाया गया है । वहाँ मे जान लेना चाहिये।
॥ सतरहवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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