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भगवती सूत्र-स. १७ उ. १ पुरुप और ताल वृक्ष को क्रिया
१० प्रश्न-हे भगवन् ! वह कन्द अपने भार के कारण नीचे गिरे यावत् जीवों को घात करे, तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
१० उत्तर-हे गौतम! उस पुरुष को कायिकी आदि चार क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से मूल, स्कन्ध आदि निष्पन्न हुए हैं, उन जीवों को कायिकी आदि चार क्रियाएँ लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से कन्द निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को कायिको आदि पाँच क्रियाएँ लगती हैं। जो जीव नीचे गिरते हुए उस कन्द के स्वाभाविक रूप से उपकारक होते हैं, उन जीवों को भी पांच क्रियाएँ लगती हैं। कन्द के समान यावत् बीज तक कहना चाहिये ।
विवेचन-१- कोई पृरुप ताड़ वृक्ष को हिलाता है या उसके फल को नीचे गिराता है, तो ताड़-फल के जीवों की और ताड़-फल के आश्रित जीवों की हिमा करता है । जो प्राणातिपात रूप क्रिया करता है, वह कायिकी आदि चार क्रियाएँ भी अवश्य करता है । इसलिये उस पुरुष को कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । २-नाड़-वक्ष और ताड़फल के जीवों को भी पूर्वोक्त पांचों क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि वे स्पर्शादि द्वारा दूसरे जीवों को साक्षात् मारते हैं । ३-जब पुरुष ताड़-फल को हिलाता है या तोड़ता है, तत्पश्चात् जब वह फल अपने भार से नीचे गिरता है और उस द्वारा अन्य जीवों की हिंसा होती है, तब उस पुरुष को चार क्रियाएँ लगती हैं, क्योंकि फल के गिरने से हिसा होती है, उसमें पुरुप साक्षात् कारण नहीं है, परम्परा कारण है । इसलिये उसे प्राणातिपातिकी क्रिया के अतिरिक्त शेष चार क्रियाएँ लगती है । ४-इसी प्रकार ताड़ वृक्ष को भी चार क्रियाएँ लगती हैं। ५-ताड़ फल के जीवों को पांच क्रियाएं लगती हैं। क्योंकि वे प्राणातिपात में साक्षात् कारण होते हैं । ६-नीचे गिरते हुए ताड़-फल के लिये जो जीव उपकारक होते हैं, उन्हें भी पूर्वोक्त युक्ति से पांच क्रियाएँ लगती हैं। इस प्रकार फल के विषय में छह क्रियास्थान कहे गये हैं । इसी प्रकार मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल
और बीन के विषय में भी पूर्वोक्त छह क्रिया-स्थान समझने चाहिये । क्रिया विषयक विशेष विचार पांचवें शतक के छठे उद्देशक में 'धनुष से वाण फेंकने वाले पुरुप' के प्रकरण में किया गया है।
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