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________________ भगवती सूत्र-श. १६ उ. ११ द्वीपकुमारों की वक्तव्यता २५९१ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! समी द्वीपकुमार, समान आहार वाले और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । यहां प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक में द्वीपकुमारों की जो वक्तव्यता कही, वह सभी कहनी चाहिये यावत् कितने ही विषम आयुष्य वाले और विषम उत्पत्ति वाले होते हैं-यहां तक कहना चाहिये। २ प्रश्न-हे भगवन् ! द्वीपकुमारों के कितनी लेश्याएँ कही हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! उनके चार लेश्याएँ कही हैं। यथा-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या । ३ प्रश्न-हे भगवन ! कृष्णलेश्या वाले यावत तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किस से यावत् विशेषाधिक हैं ? .३ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़े द्वीपकुमार तेजोलेश्या वाले हैं, कापोतलेश्या वाले उनसे असंख्यात गुण हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं। ___४ प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किन से अल्पद्धिक और महद्धिक हैं ? ___४ उत्तर-हे गौतम ! कृष्णलेश्या वाले द्वीपकुमारों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महद्धिक हैं यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सभी से महद्धिक हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विवरते हैं । ॥ सोलहवें शतक का ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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