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________________ भगवती सूत्र - श. १६ उ ११ द्वीपकुमारों की वक्तव्यता सेसं भाणियव्वं । * सेवं भंते! मेवं भंते ! जाव विहरs || सोलममे मए दममो उद्देसो समत्तो ॥ Jain Education International कठिन शब्दार्थ - ओही-अवधि | भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का कहा है ? १ उत्तर - हे गौतम ! अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा है। यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का ३३ वाँ अवधिपद सम्पूर्ण कहना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन अवधि दो प्रकार का कहा गया है । यथा-भवप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक | देव और नरयिकों के भवप्रत्ययिक अवधि होता है और मनुष्य तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यचों के क्षायोपशमिक अवधि होता है । इसका विशेष विवरण प्रज्ञापना सूत्र ३३ वें अवधपद में है । || सोलहवें शतक का दसवां उद्देशक सम्पूर्ण || २५८९ शतक १६ उद्देशक ११ द्वीपकुमारों की वक्तव्यता १ प्रश्न - दीवकुमाराणं भंते! सव्वे समाहारा, सव्वे समुस्सा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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