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भगवती सूत्र-श. १६ उ. ५ वैरोचनेन्द्र की सुधर्मा सभा कहां है ?
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कठिन शब्दार्थ-उप्पायपव्वए-उत्पात पर्वत ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचन राज बलि को सुधर्मा सभा कहां कही गई है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! जम्न द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में तिरछा असंख्येय द्वीप-समद्रों को उल्लंघ कर इत्यादि दूसरे शतक के आठवें उद्देशक में. चमर की वक्तव्यता कहीं है, उसी प्रकार अरुणवर द्वीप की बाह्य वेदिका से अरुणवर समुद्र में बयालीस हजार योजन अवगाहन करने के पश्चात् वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत है । वह उत्पात पर्वत १७२१ योजन ऊँचा है। शेष उसका सभी परिमाण तिगिच्छकूट पर्वत के समान जानना चाहिये । उसके प्रासादावतंसक का परिमाण भी उसी प्रकार जानना चाहिये। तथा बलि के परिवार सहित सपरिवार सिंहासन तथा रुचकेन्द्र नाम का अर्थ भी उसी प्रकार जानना चाहिये । विशेषता यह है कि यहां रुचकेन्द्र (रत्नविशेष) की प्रभा वाले उत्पलादि हैं। शेष सभी उसी प्रकार है यावत् वह बलिचंचा राजधानी तथा अन्यों का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। उस रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत के उत्तर में छह सौ पचपन करोड़ तीस लाख, पचास हजार योजन अरुणोदय समुद्र में तिरछा जाने पर नीचे रत्नप्रभा पथ्वी में इत्यादि पूर्ववत् यावत् चालीस हजार योजन जाने के पश्चात् वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की 'बलिचंचा' नामक राजधानी है। उस राजधानी का विष्कम्भ (विस्तार) एक लाख योजन है । शेष सभी प्रमाण पूर्ववत् जानना चाहिये यावत् 'बलिपीठ' तक कहना चाहिये । तथा उपपात यावत् आत्म-रक्षक यह सभी पूर्ववत् कहना चाहिये । विशेषता यह है कि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक कही गई है। शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिये, यावत् 'वैरोचनेन्द्र बलि है, वैरोचनेन्द्र बलि है'-तक कहना चाहिये।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
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