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भगवती सूत्र. १६ उ ५ गंगदल का पूर्वभव
१० प्रश्न - गंगदत्ते णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्ख
एणं० १
१० उत्तर - जाव महाविदेहे वासे सिज्झिeिs जाव अंत काहि ।
२५५१
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
|| सोलसमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ और अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन आदि तथा ज्येष्ठ पुत्र को पूछ कर हजार पुरुषों द्वारा उठाने योग्य शिविका में बैठ कर, अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन यावत् परिवार द्वारा तथा ज्येष्ठ पुत्र द्वारा अनुसरण किया जाता हुआ सर्व ऋद्धि सहित यावत् वादिन्त्र के घोषपूर्वक हस्तिनापुर के मध्य में हो कर सहस्रा वन उद्यान की ओर चला । तीर्थंकर भगवान् के छत्रादि अतिशय देख कर यावत् (तेरहवें शतक के छठे उद्देशक में कथित ) उदायन राजा के समान यावत् स्वयमेव आभूषण उतारे और स्वयमेव पञ्चमुष्टिक लोच किया । इसके बाद श्री मुनिसुव्रत स्वामी के पास जा कर, उदायन राजा के समान दीक्षा ली यावत् गंगदत्त अनगार ने ग्यारह अंगों का ज्ञान पढ़ा यावत् एक मास की संलेखना से साठ भक्त अनशन का छेदन किया और आलोचना-प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक काल कर के महाशुक्र कल्प में महासामान्य नामक विमान की उपपात सभा के देव-शयनीय में यावत् गंगदत्त देवपने उत्पन्न हुआ । तत्पश्चात् तत्काल उत्पन्न हुआ वह गंगदत्त देव पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त बना । - आहारपर्याप्ति यावत् भाषा मन पर्याप्ति । इस प्रकार हे गौतम ! उस गंगदत्त देव को वह दिव्य देवद्ध पूर्वोक्त प्रकार से यावत् प्राप्त हुई है ।
यथा
९ प्रश्न - हे भगवन् ! उस गंगदत्त देव की स्थिति कितने काल की कही गई ?
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