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________________ २१६० भगवती सूत्र-श. १३ उ. २ देवावामों की संख्या विस्तारादि ४ उत्तर-एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा, तहेव वागरणं; णवरं दोहिं वेएहिं उववजंति, णपुंसगवेयगा ण उववजंति. सेसं तं चेव । उब्वटुंतगा वि तहेव, णवरं असण्णी उव्वद॒ति । ओहि. णाणी ओहिदंसणी य ण उब्बटुंति, सेसं तं चेव, पण्णत्तएसु तहेव णवरं संखेजगा इत्थिवेयगा पण्णत्ता, एवं पुरिसवेयगा वि, णपुंसगवेयगा णत्थि । कोहकसाई सिय अस्थि सिय णत्थि, जइ अस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा पण्णत्ता । एवं माण० माय० । संखेजा लोभकसाई पण्णत्ता, सेसं तं चेव । तिसु वि गमएसु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियब्वाओ एवं असंखेजवित्थडेसु वि, णवरं तिसु वि गमएमु असंखेज्जा भाणियव्वा, . जाव असंखेजा अचरिमा पुण्णत्ता । ५ प्रश्न-केवइया णं भंते ! णागकुमारावास० ? ५ उत्तर-एवं जाव थणियकुमारा, णवरं जत्थ जत्तिया भवणा। कठिन शब्दार्थ--वागरणं-व्याकरण (उत्तर)। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! कितने प्रकार के देव कहे गये हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! चार प्रकार के देव कहे गये हैं । यथा-१ भवनवासी २ वाणव्यन्तर ३ ज्योतिषी और ४ वैमानिक । २ प्रश्न-हे भगवन् ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! दस प्रकार के कहे गये हैं । यथा-असुरकुमार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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