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भगवती सूत्र - १६ उ ५ गंगदत्त देव के प्रश्न
में उल्लुकतीर नामक नगर के एकजम्बूक उद्यान में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यथायोग्य अवग्रह ले कर विचरते हैं, अतः मुझे वहां जा कर भगवान् को वन्दना नमस्कार यावत् पर्युपासना करना और उपर्युक्त प्रश्न पूछना श्रेयस्कर है । ऐसा विचार कर चार हजार सामानिक देवों के परिवार के साथ, सूर्याम देव के समान यावत् निर्घोष-निनादित ध्वनिपूर्वक, इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में उल्लुकतीर नामक नगर के एकजम्बूक उद्यान में मेरे निकट आने के लिए चला । मेरी ओर आते हुए उस देव की तथाविध दिव्य देवद्ध, दिव्य देव द्युति, दिव्य देवप्रभा और दिव्य तेजोराशि को सहन नहीं करता हुआ देवेन्द्र देवराज शक यहां आया और संक्षेप में आठ प्रश्न पूछ कर और शीघ्रता पूर्वक वन्दनानमस्कार कर यावत् चला गया ।
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विवेचनाकेन्द्र का जीव, पूर्वभव में कार्तिक नाम का सेठ था । वह अभिनव ( तत्काल का ) बना हुआ सेठ था ओर गंगदत्त भी सेठ था । वह जीर्ण ( पहले का) सेठ था । इन दोनों में प्रायः मत्सर-भाव रहता था । पूर्व के मात्सर्य भाव से गंगदत्त देव की ऋद्धि शकेन्द्र से सहन नहीं हुई। आतुरता का यही कारण प्रतीत होता है ।
गंगदत्त देव के प्रश्न
३ - जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयम परिकहेइ तावं चणं से देवे तं देसं हव्वमागए । तरणं से देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो बंदर णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
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प्रश्न - एवं खलु भंते ! महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे एगे मायिमिच्छदिट्टिउववण्ण देवे ममं एवं वयासी - 'परिणममाणा
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