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भगवती सूत्र-श. १६ उ. ५ केन्द्र के प्रश्न और भगवान् के उत्तर
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___ कठिन शब्दार्थ-आगमित्तए-आ सकता है, वागरित्तए-उत्तर देना, उम्मिसावेत्तए गिमिसावेत्तए-आँख खोलने और बन्द करने, संभंतिय-उत्सुकता पूर्वक अथवा शीघ्र ही ।
भावार्थ-उस काल उस समय में उल्लकतीर नामक नगर था (वर्णन)। एकजम्बूक नामक उद्यान था (वर्णन) । श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहां पधारे यावत् परिषद् पर्युपासना करती है। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि शक्र इत्यादि सोलहवें शतक के द्वितीय उद्देशकवत दिव्य यान-विमान से यहां आया और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार पूछा
प्रश्न-“हे भगवन ! कोई महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना यहां आने में समर्थ है ?
उत्तर-हे शक ! यह अर्थ समर्थ नहीं।
प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके यहाँ आने में समर्थ है ?
उत्तर-हाँ शक ! समर्थ है।
प्रश्न-हे भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, इसी प्रकार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके गमन करने, बोलने, उत्तर देने, आंख खोलने और बन्द करने, शरीर के अवयवों को संकोचने और फैलाने में, स्थान, शय्या, निषद्या और स्वाध्याय-भूमि को भोगने, वैक्रिय करने और परिचारणा (विषयोपभोग) करने में समर्थ है ?
उत्तर-हां शक ! यावत् समर्थ है।
देवेन्द्र देवराज शक्र पूर्वोक्त सक्षिप्त आठ प्रश्न पूछ कर उत्सुकतापूर्वक (शीघ्र ही) भगवान् को वन्दना-नमस्कार करके उस दिव्य-यान विमान पर चढ़ कर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया।
विवेचन-कोई भी संसारी जीव, बाहरी पुद्गलों को ग्रहण किये बिना कोई भी क्रिया नहीं कर सकता, यह तो निश्चित बात है । किन्तु देव ता महद्धिक होता है, इसलिए वह कदाचित् बाहरी पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ही गमनादि क्रिया कर सकता हो, इस
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