________________
भगवत मूत्र--ग. १६ उ ५ शकेन्द्र के प्रश्न और भगवान् के उत्तर
२५३७
शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं और वे श्रम ग-निग्रन्थ यावत् महापर्यवसान वाले होते हैं।
___ हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष, सूखे हुए घास के पूले को यावत् अग्नि में डाले, तो वह शीघ्र ही जल जाता है, इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथा-बादर कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
जैसे कोई पुरुष, पानी की बूंद को तपाये हुए लोह के कड़ाह पर डाले तो वह शीघ्र ही नष्ट हो जाती है, इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथा-बादर कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते है । छठे शतक के प्रथम उद्देशकानुसार यावत् वे महापर्यवसान वाले होते हैं । इसलिये हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि 'अन्नग्लायक श्रमण-निर्ग्रन्थ जितने कर्मों को क्षय करता है, इत्यादि यावत् उतने कर्मों को नैरयिक जीव, कोटाकोटि वर्षों में भी नहीं खपाते।'
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ सोलहवें शतक का चौथा उद्देशक सम्पूर्ण ।।
शतक १६ उद्देशक
शकेन्द्र के प्रश्न और भगवान के उत्तर १-तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे णामं णयरे होत्था, वण्णओ। एगजंबूर चेइए, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org