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भगवता सूत्र-श. १६ उ ३ अब छेदन में लगने वाली क्रिय।
हुआ जीव दुसरी कितनी प्रकृतियों को वेदता है, इस विषयक विचार प्रज्ञापना सूत्र के सत्तावीसवें वेदावेद पद में किया गया है । ज्ञानावरणीय कर्म को वेदता हुआ जीव आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है और जब मोहनीय कर्म का क्षय हो जाता है, तब मोहनीय कर्म के सिवाय सात कर्म-प्रकृतियों को वेदता है । औधिक (सामान्य जीव) दण्डक के समान मनुष्य दण्डक के विषय में जानना चाहिये, इत्यादि वर्णन वहां में जान लेना नाहिये ।
प्रज्ञापना सूत्र के छब्बीसवें 'वेदाबन्ध' पद में यह विचार किया गया है कि किसी एक कर्म-प्रकृति को वेदता हुआ जीव, कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधता है ? ज्ञानावरणीय कर्म को वेदता हुआ जीत्र, सात आठ, छह या एक कर्म प्रकृति को बांधता है । जब जीव आयुप्य कर्म का बंध करता है तब आठ कर्म प्रकृतियों का बंध करता है। जब आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं करता, तब सात कर्म-प्रकृतियों को बांधता है । सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में आयुष्य और मोहनीय के सिवाय छह कर्म-प्रकृतियों को बांधता है। उपशान्त-मोहादि दो गुणस्थानों में एक वेदनीय-कर्म को बांधता है, इत्यादि वर्णन वहाँ से जान लेना चाहिए ।
___प्रज्ञापना सूत्र के पच्चीसवें 'वन्धावेद' पद में यह प्रतिपादन किया गया है कि किसी एक कर्म प्रकृति को बांधता हुआ जीव, कितनी कर्म-प्रकृतियाँ वेदता है । ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधता हुआ जीव अवश्य आठों कर्मों को वेदता है, इत्यादि वर्णन वहां से जान लेना चाहिये।
प्रज्ञापना सूत्र के चौवीसवें 'वन्धाबन्ध' पद में यह प्रतिपादन किया गया है कि किसी एक कर्म प्रकृति को बांधता हुआ जीव, कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधता है । ज्ञानावरणीय-कर्म को वांधता हुआ जीव सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों को बांधता है । आयुष्य नहीं वांधता तव सात, आयुष्य सहित आठ और मोहनीय तथा आयुप्य विना छह प्रकृतियों को बांधता है, इत्यादि वर्णन वहाँ से जान लेना चाहिये ।
अर्श छेदन में लगने वाली क्रिया
६-तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ रायगिहाओ णयराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता
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